पटना : बिहार के बाहुबली राजनेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन रिहा कर दिए गए हैं। गुरुवार की सुबह सुबह उन्हें 16 साल बाद जेल से रिहाई मिल गई। इससे पहले बेटे की सगाई के लिए वो पैरोल पर बाहर आए थे और बुधवार को ही उन्होंने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद गुरुवार की सुबह 4 बजे ही उन्हें जेल से रिहाई दे दी गई।
दरअसल जेल प्रशासन को ऐसा लग रहा था कि सुबह के समय रिहाई करने पर जेल के सामने भीड़ जमा हो सकती है। इसीलिए आनंद मोहन को भोर में 4 बजे छोड़ने का फैसला लिया गया, इसके लिए बुधवार की रात में ही सारे कागजी काम पूरे कर लिए गए। आनंद मोहन को गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद वो 16 साल से जेल में थे।
कृष्णैया के परिवार से मिलना चाहता है आनंद मोहन का परिवार
आनंद मोहन की रिहाई के बाद उनके घर में खुशी का माहौल है। हालांकि बिहार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जी कृष्णया की हत्या के मामले में सजायाफ्ता आनंद मोहन सहित 27 लोगों की रिहाई को लेकर प्रदेश की सियासत गर्म है। इस बीच, पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद ने अधिकारी के परिजनों से मिलने की इच्छा व्यक्त की है।
दोनों परिवारों ने काफी दुख उठाया- चेतन आनंद
राजद के विधायक चेतन आनंद ने बुधवार को यहां कहा कि अधिकारी जी. कृष्णया के परिवार से पूरी सहानुभूति है। उन्होंने इच्छा जताई कि उनका परिवार हैदराबाद जाकर जी.कृष्णया की पत्नी और बेटी से मिलना चाहता है। इसके लिए हैदराबाद में उन्होंने अपने लोगों से संपर्क साधा है, जो जी.कृष्णया की पत्नी के पास जायेंगे। उन्होंने कहा इस घटना के बाद दोनों परिवार ने काफी कुछ सहा है। दोनों परिवारों ने काफी दुख उठाए हैं।
क्यों सुर्खियों में बिहार में इस समय पूर्व सांसद और विधायक आनंद मोहन सिंह को लेकर राज्य सरकार का निर्णय
गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन दोषी ठहराए गए थे और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी. लेकिन अब बिहार की नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में संशोधन करते हुए आनंद मोहन समेत 27 लोगों की रिहाई के आदेश दिए हैं.बाहुबली नेता आनंद मोहन को इस मामले में उम्र क़ैद की सज़ा मिली थी.वह तारीख़ थी 5 दिसंबर 1994. उस दिन बिहार के ही गोपालगंज के ज़िलाधिकारी की हत्या बीच सड़क पर कर दी गई थी.
आनंद मोहन पर उस दिन भीड़ को भड़काने का आरोप लगा था.इस मामले में आनंद मोहन को निचली अदालत ने फ़ांसी की सज़ा सुनाई थी, जिसे पटना हाईकोर्ट ने उम्र क़ैद में बदल दिया था.आनंद मोहन राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गए थे, लेकिन उन्हें इस मामले में कोई राहत नहीं मिली.
आनंद मोहन विधायक और सांसद रह चुके भारत के पहले ऐसे नेता थे जिन्हें फ़ांसी की सज़ा सुनाई गई थी.
कौन हैं आनंद मोहन
बिहार के सहरसा ज़िले के पचगछिया गाँव के रहने वाले आनंद मोहन ने छात्र जीवन में ही 1974 के जेपी आंदोलन के दौरान राजपूतों के एक बड़े चेहरे के तौर पर पहचान बना ली थी.आनंद मोहन ने साल 1990 में जनता दल के टिकट पर महिषी से विधानसभा का चुनाव जीता था.इस समय तक आनंद मोहन कोसी के इलाक़े में एक बाहुबली राजपूत नेता के तौर पर सुर्ख़ियों में रहने लगे थे.आनंद मोहन बिहार में अख़बारों और पत्र पत्रिकाओं में छपी तस्वीरों में कभी घोड़े की सवारी करते, तो कभी बंदूक के साथ दिखते थे.उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का भी क़रीबी माना जाता था जो उनकी ही जाति के थे.
1993 में बनाई अलग पार्टी
ये बिहार समेत पूरे उत्तर भारत में राजनीतिक तौर पर उथल-पुथल वाला दौर था.एक तरफ बीजेपी देशभर में राम मंदिर आंदोलन को लेकर कांग्रेस की राजनीति को चुनौती दे रही थी, वहीं वीपी सिंह के प्रधानमंत्री रहते भारत में मंडल आयोग की सिफ़ारिशों और आरक्षण को लेकर हंगामा हो रहा था.बिहार में जनता दल ने उस समय मंडल आयोग की सिफ़ारिशों का स्वागत किया था. यहाँ शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान जैसे नेता मंडल के समर्थन में खड़े थे.
लेकिन आनंद मोहन राजपूत बिरादरी से थे और आरक्षण विरोधी माने जाते थे.इसलिए उन्होंने साल 1993 में जनता दल से अलग होकर ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ बना ली.
उस दौर में लालू प्रसाद यादव ऊँची जाति के विरोधी नेताओं में अपनी ख़ास जगह बना चुके थे और उनके भाषणों की भी ख़ूब चर्चा होती थी.जबकि कोसी-सीमांचल के ही एक और बाहुबली नेता पप्पू यादव आरक्षण के समर्थन में थे.इन दोनों नेताओं के बीचे की दुश्मनी की ख़बरें उस वक़्त बिहार में अक्सर सुर्ख़ियाँ बनती थीं.
राजनीतिक ताक़त
आनंद मोहन शिवहर से सांसद भी रहे हैं. उनकी पत्नी लवली आनंद भी वैशाली से सांसद रही हैं, जबकि उनके बेटे चेतन आनंद फ़िलहाल शिवहर से आरजेडी के विधायक हैं.कुछ ही महीने पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपनी एक सभा में यह संकेत दे चुके थे कि उनकी सरकार आनंद मोहन की रिहाई की कोशिश में लगी हुई है और इसके लिए काम कर रही है.अब आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. इस मामले पर आनंद मोहन ने गुजरात में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप के दोषियों की रिहाई का मुद्दा उठाया.
उन्होंने कहा, “गुजरात में भी कुछ फ़ैसला हुआ है जाकर देख लीजिए. माला पहनाकर कुछ लोगों को छोड़ा गया है, क्या वो भी आरजेडी और नीतीश कुमार के दबाव में हुआ है?”
बीजेपी के नेता इस मामले को लेकर कंफ़्यूज लग रहे हैं. कुछ नेता जहाँ नीतीश कुमार सरकार के फै़सले की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कुछ नेता आनंद मोहन के मामले को अलग देख रहे हैं.बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तो नीतीश कुमार के जेल मैनुअल में बदलाव को लेकर उनकी कड़ी आलोचना की है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि बिहार की महागठबंधन सरकार ने आनंद मोहन के बहाने अपने एमवाई समीकरण को साधने की कोशिश की है और कई बड़े अपराधियों को जेल से बाहर करने का रास्ता निकाला है.
कुछ ऐसा ही बयान केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने दिया है और भी आनंद मोहन पर नहीं, बल्कि बाक़ी कई अपराधियों को लेकर सवाल उठा रहे हैं, जिन्हें बदले हुए नियमों का लाभ मिल रहा है.आनंद मोहन की रिहाई पर बीजेपी की संभल कर आ रही प्रतिक्रिया के पीछे भी एक ख़ास वजह मानी जा रही है.
आनंद मोहन बिहार में राजपूत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं. उनका असर शिवहर ही नहीं, बल्कि आसपास के इलाक़ों तक हो सकता है.वरिष्ठ पत्रकार नवीन उपाध्याय बताते हैं, “आनंद मोहन की रिहाई पूरी तरह से एक राजनीतिक फ़ैसला है. साल 2021 में ही जेल में उनके 14 साल पूरे हो गए थे, लेकिन उस समय नीतीश कुमार ने राजपूत लॉबी की तरफ़ से रिहाई की मांग को ख़ारिज़ कर दिया था.”नवीन उपाध्याय के मुताबिक़ बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत उम्मीदवार विधायक जीतकर आए थे, जिसका बड़ा हिस्सा एनडीए के खाते में गया था.
नवीन उपाध्याय कहते हैं, “बिहार में क़रीब चार फ़ीसदी वोटों के साथ राजपूत 40 विधासभा सीटों और आठ लोकसभा सीटों पर असर रखते हैं. इसलिए एनडीए से अलग होने के बाद नीतीश कुमार इस वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं.
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और राजनीतिक मामलों के जानकार डीएम दिवाकर कहते हैं कि आज की राजनीति में कोई जाति कहीं एक जगह है, ऐसा नहीं है, अब हर जाति में राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ी है. अब आप ये नहीं कह सकते कि ये फलां जाति का नेता हैं और सब वोटर उन्हीं के साथ हैं.हालाँकि डीएम दिवाकर मानते हैं, “राजपूतों का कुछ वोट आरजेडी के साथ है ही, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह अब नहीं रहे. वहीं जगदानंद सिंह के बटे से आरजेडी की ठीक से बनती नहीं है, ऐसे में महागठबंधन को एक राजपूत चेहरा चाहिए था और इसी बहाने राजपूतों पर एक उपकार भी हो जाएगा.
डीएम दिवाकर कहते हैं, “उदाहरण के लिए यादवों के सबसे बड़े नेता लालू यादव हैं, लेकिर रंजन यादव, रामकृपाल यादव, नंद किशोर यादव, नित्यानंद राय इन सबको जहाँ जगह मिली, वहाँ खप गए हैं. इसी तरह सभी जातियों में अवसरवादिता है, जहाँ जिसको जगह मिल जाए.
दलित वोटों पर असर
नीतीश सरकार का संदेश है कि राजपूत बिरादरी के लिए उन्होंने क़ानून बदलकर बड़ा काम किया है.लेकिन क्या इससे उनके दलित वोटों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि जी कृष्णैया ख़ुद दलित थे?
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है और नीतीश सरकार के फ़ैसले को दलित विरोधी कहा है.
उन्होंने कहा, “आनंद मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम श्री कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देश भर के दलित समाज में काफ़ी रोष है. चाहे कुछ मजबूरी हो किंतु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करे.
डीएम दिवाकर कहते हैं, “आनंद मोहन की रिहाई का दोनों असर है. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन जनता को कैसे समझा पाता है. एमवाई समीकरण को आज भी मज़बूत माना जाता है, लेकिन ओवैसी आ जाते हैं और अपना असर छोड़ते हैं. आज का चुनावी गणित किसे कहाँ ले जाएगा कह पाना मुश्किल है.
वहीं नवीन उपाध्याय कहते हैं, “दलित मूल रूप से चिराग पासवान की पार्टी के वोटर हैं. नीतीश के साथ महादलित वोट हैं, क्योंकि यह वोट बैंक उन्होंने ख़ुद तैयार किया है. महागठबंधन को अब ज़रूरत थी राजपूत वोटों की और मेरा मानना है कि बिहार की राजनीति पर इसका असर पड़ेगा. सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी के तौर पर नीतीश का यह दांव भारतीय जनता पार्टी और मायावती सन्न गया है ।
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