उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति नरेंद्र सिंह बर्खास्त, नियम विरुद्ध था चयन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नरेंद्र सिंह भंडारी की उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्ति को विश्वविद्यालय अधिनियम, 2019 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विनियम 2018 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नरेंद्र सिंह भंडारी की उत्तराखंड के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्ति को विश्वविद्यालय अधिनियम, 2019 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विनियम 2018 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए रद्द कर दिया। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने भंडारी की नियुक्ति को रद्द करने और रद्द करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखापीठ ने कहा कि उपरोक्त चर्चा और बताए गए कारणों के मद्देनजर, वर्तमान अपील विफल हो जाती है और खारिज करने योग्य है और तदनुसार खारिज कर दी जाती है।
पीठ ने कहा कि जहां तक भंडारी की ओर से प्रार्थना की गई कि यदि वह मामले में सफल नहीं होते हैं तो वह विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार और इच्छुक है। अंतत: कुलपति के पद से उन्हें इस्तीफा देना होगा।पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय अधिनियम, 2019 की धारा 10 और यूजीसी रेगुलेशन, 2018 का रेगुलेशन 7.3.0 के तहत वैधानिक आवश्यकताओं के साथ विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपीलकर्ता यानी भंडारी की नियुक्ति को अवैध है। इसमें कहा गया है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भंडारी की नियुक्ति को सही तरीके से रद्द कर दिया है और हम उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं। मामले में इस अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक भंडारी का यह कहना है कि वह अपने अकादमिक करिअर के आधार पर वह कुलपति के रूप में नियुक्त होने के लिए उपयुक्त और सबसे मेधावी व्यक्ति हैं, उसके बाद उन्हें कुलपति नियुक्त किया गया। यह सच हो सकता है कि अपीलकर्ता का बहुत अच्छा/उज्ज्वल शैक्षणिक करिअर रहा हो, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि वह सबसे मेधावी व्यक्ति थे, क्योंकि उनकी अन्य मेधावी व्यक्तियों के साथ तुलना नहीं की गई थी।
ऐसी होती है कुलपति चयन की प्रक्रिया
यूजीसी के नियमानुसार, कुलपति के पद के लिए चयन एक पैनल द्वारा उचित पहचान के माध्यम से किया जाना चाहिए। खोज-सह-चयन समिति के द्वारा 3-5 दावेदारों के पैनल की शॉर्ट लिस्टिंग के बाद सिफारिश की जानी चाहिए। चयन समिति के सदस्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्ति हों और संबंधित विश्वविद्यालय या उसके कॉलेजों से किसी भी तरह से जुड़े न हों। पैनल तैयार करते समय, खोज समिति अकादमिक उत्कृष्टता आदि को उचित महत्व देगी और उसके बाद कुलाधिपति, कुलपति खोज-सह-चयन समिति द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल में से किसी एक को कुलपति को नियुक्त करेंगे।
मामले में नहीं हुआ प्रक्रिया का पालन
पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में इस तरह की प्रक्रिया का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया है। विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त करने से पहले न तो कोई विज्ञापन जारी किया गया था, न ही योग्य मेधावी उम्मीदवारों से नाम मांगे गए थे, न ही खोज-सह-चयन समिति द्वारा उनके नाम की सिफारिश की गई थी, न ही कोई खोज समिति थी और इसलिए खोज का कोई अवसर नहीं था।
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