उत्तराखंड : जंगलों में आग एक बार फिर धधक पड़ी है। पहाड़ जल रहा है। आखिर इस भड़कती आग को सिस्टम काबू क्यों नहीं कर पा रहा है इस आग में बेशकीमती वनसंपदा का नास तो हो ही रहा है लेकिन अब एक बेहद ही दुखद खबर सामने आ रही है। अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर के खाईकट्टा में जंगल की आग में जलने से युवक की मौत हो गई। अफसोस कि सिस्टम को बाद में पता चला।
जानकारी के मुताबिक बीते बृहस्पतिवार को सोमेश्वर के खाईकट्टा के पास जंगल में आग लग गई। गांव के ही लोग देर रात तक आग बुझाने में जुटे रहे। इसी बीच गांव का युवक महेंद्र सिंह (40) आग की चपेट में आ गया।बुरी तरह जलने से उसकी मौत हो गई। उसका आधा शरीर जलकर खाक हो गया। सूचना के बाद दूसरे दिन वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और अधजले शव को कब्जे में लिया।
वहीं वन रेंजर मनोज लोहनी ने कहा कि नाप भूमि पर आग लगी थी। आवश्यक कार्रवाई की जा रही है। वहीं बीते दिनों सोमेश्वर क्षेत्र में लीसा दोहन में लगे दो महिला, दो पुरुष सहित चार श्रमिकों की जंगल की आग की चपेट में आने से मौत हो चुकी है।
जंगलों में भड़कती आग – सिस्टम फेल.. अब इकलौता चिराग खोने वाली मां का कौन पोछेगा आंसू..
इस साल दावानल ने जिले में सबसे अधिक कहर बरपाया है। सोमेश्वर रेंज में जंगल की आग में जलने से हुई युवक की मौत के बाद हर किसी की आंख में आंसू हैं और सरकारी तंत्र के खिलाफ आक्रोश। इस घटना में हंसते-खेलते परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया। मृतक युवक महेंद्र जब सिर्फ छह माह का था, उसके पिता की मौत हो गई।
मां ने किसी तरह संघर्षों से इकलौते बेटे को पाला और उम्र के अंतिम पड़ाव में वह उसी के सहारे जीवन जी रही थी। अब उसके जीवन का सहारा हमेशा के लिए उसका साथ छोड़ गया।खाईकट्टा निवासी महेंद्र जब सिर्फ छह माह का था उसके पिता की मौत हो गई। मां राधा देवी ने किसी अकेले उसका पालन-पोषण कर उसका विवाह किया।
वह घर के इलकौते चिराग, उसकी पत्नी पुष्पा और 18, 14, 11 साल की तीन पोतियों के साथ हंसी-खुशी जीवन जी रही थी। महेंद्र भी मेहनत-मजदूरी कर मां, पत्नी और तीनों बेटियों की हर जरूरत पूरी कर रहा था। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक घटना ने इस परिवार की खुशियां हमेशा के लिए छीन लीं। महेंद्र ग्रामीणों के साथ अपने गांव को दावानल से सुरक्षित बचाने के लिए आग बुझाने जंगल गया। उसे यह मामलू नहीं था कि वहां मौत उसका इंतजार कर रही है। सभी ग्रामीण गांव की तरफ बढ़ रही आग को बुझाकर घर लौटे, लेकिन उसकी वापसी नहीं हो सकी।
75 वर्षीय मां, पत्नी और तीनों बेटियां उसके घर लौटने का इंतजार करते रहे, लेकिन दूसरे दिन सुबह उन्हें उसकी मौत की खबर मिली। अपने इकलौते बेटे को खोने वाली बूढ़ी मां और पिता को खोने वाली बेटियों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे, जबकि पत्नी बदहवास है।
अंदाजा लगाया जा रहा है कि युवक फिसलकर खाई में धधक रही आग के बीच फंस गया। घनघोर रात में किसी को घटना का पता नहीं चला। जब वह घर नहीं लौटा तो परिजनों की सूचना पर उसकी खोजबीन शुरू हुई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
जंगलों की सुरक्षा करने वाला वन विभाग दावानल की घटनाओं से अंजान है और लोग इसे बुझाते हुए अपनी जान गंवाने के लिए मजबूर हैं। सोमेश्वर रेंज के खाईकट्टा में भी जंगल में लगी आग ने ग्रामीणों की नींद उड़ाई। बृहस्पतिवार को जंगल में आग लग गई, लेकिन वन विभाग घटना से अंजान रहा। शुक्रवार सुबह तीन बजे तक ग्रामीण आग बुझाने में जुटे रहे। जब विभाग को इस घटना में एक युवक के जलने से मौत की सूचना मिली तो वन कर्मी मौके पर पहुंचे। यदि समय रहते वन विभाग जंगल में आग लगने की घटना का संज्ञान लेकर इस पर काबू पाने के लिए गंभीरता दिखाता तो शायद युवक को अपनी जान न गंवानी पड़ती। अब वन विभाग वन पंचायत के जंगल में आग लगने का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है।
एक दशक में पहली बार पांच लोगों की जंगल की आग में जलने से हुई मौत
अल्मोड़ा में बीते एक दशक में इस बार जंगल की आग ने अपना रौद्र रूप दिखाया, इस पर काबू पाने में सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल साबित हुआ है। खुद वन विभाग के आंकड़े इसका प्रमाण हैं। इस फायर सीजन जिले में 149 घटनाओं में 275 हेक्टेयर से अधिक जंगल जलकर खाक हो गया। बीते एक दशक में जंगल की आग की चपेट में आने से किसी की मौत नहीं हुई। इस बार फायर सीजन में अब तक दो महिलाओं सहित पांच लोगों को जंगल की आग में जलने से अपनी जान गंवानी पड़ी है।
वही इस हृदय विधायक घटना के बाद अल्मोड़ा वन प्रभाग के डीएफओ दीपक सिंह ने कहा कोट- जंगल की आग में जलने से युवक की मौत हुई है। आग लगाने वालों के खिलाफ केस दर्ज होगा। पीड़ित परिवार को जल्द ही मुआवजा दिया जाएगा।
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