उत्तराखंड : अंकिता मर्डर केस मामले में उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने राज्य में राजस्व पुलिस की व्यवस्था को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने और राजस्व पुलिस के बजाय सामान्य पुलिस बल के थाने-चौकियां बनाने का अनुरोध किया है।
उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने पत्र में कहा कि आज के आधुनिक युग में सामान्य पुलिस विभाग में पूरे देश में एक राज्यसे दूसरे राज्य में पीड़ित जीरो एफआइआर दर्ज कराकर अपनी शिकायत पंजीकृत करा सकता है।
राजस्व पुलिस के पास नहीं आधुनिक हथियार
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि ऋषिकेश शहर से मात्र 15 किमी की दूरी पर राजस्व पुलिस, जिसके पास पुलिस के आधुनिक हथियार तथा जांच के लिए किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है, वे जांच कर रहे हैं। यह जानकर अत्यन्त ही पीड़ा हुई।
आज हमारे बीच होती अंकिता, यदि…
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि गंगा भोगपुर (यमकेश्वर) यदि सामान्य पुलिस बल कार्य कर रहा होता तो निश्चित रूप से अंकिता आज हमारे बीच होती और आम जनता में सरकारी कार्यप्रणाली के प्रति इतना रोष व्याप्त नहीं होता।
विधानसभा अध्यक्ष ने सीएम से अनुरोध किया प्रदेश में जहां कहीं भी राजस्व पुलिस की व्यवस्था चली आ रही है, को तत्काल समाप्त कर सामान्य पुलिस बल के थाने और चौकी स्थापित करने का आदेश जारी किया जाए।
अंकिता हत्याकांड में आरोपित पुल्कित आर्या का रिसॉर्ट टिहरी जनपद के वनन्तरा रिसार्ट गंगा भोगपुर (यमकेश्वर) में है। यह राजस्व पुलिस क्षेत्र में पड़ा है। यह मामला नागरिक पुलिस को हस्तांतरित होने से पूर्व राजस्व पुलिस तक पहुंचा था, मगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया।
प्रदेश की क़ानून व्यवस्था का सच है अंकिता हत्याकांड.
पहाड़ से 19 साल की एक लड़की नौकरी की तलाश में उतरती है. वो ईमानदारी और मेहनत से एक रिज़ॉर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करना चाहती है लेकिन जिस रिज़ॉर्ट में वो काम करती है, वो ईमानदारी और मेहनत से नहीं बना होता. उसका मालिक सत्ताधारी पार्टी के नेता का बेटा होता है लिहाज़ा ख़ुद को पूरी व्यवस्था का बाप समझता है. क़ानून को अपनी जेब में रख कर घूमता है.
वो रिज़ॉर्ट के नाम पर अय्याशी के ऐसे अड्डे चलाता है जहां लड़कियों को जबरन देह व्यापार के नर्क में धकेला जाता है. और कोई लड़की जब इससे इंकार करती है तो उसकी हत्या कर नहर में फेंक दिया जाता है. फिर यही रिज़ॉर्ट मालिक ख़ुद लड़की के गुमशुदा होने की शिकायत भी दर्ज करता है क्योंकि उसे भरोसा है कि क़ानून तो उसी की जेब में क़ैद पड़ा है. अगर ऐसा नहीं होता तो उस पर तभी सख़्त कार्रवाई हो चुकी होती जब लॉकडाउन के दौरान वो उत्तर प्रदेश के एक बाहुबली के बेटे को पहाड़ों में घुमा रहा था.
अंकिता के ‘ग़ायब’ हो जाने के चार दिन बाद तक भी इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि नजाने कितनी अंकिताओं की शिकायतें पहाड़ में अनसुनी ही रह जाती हैं. उत्तराखंड में 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा ऐसा है जहां न तो कोई पुलिस थाना है, न कोई पुलिस चौकी और न ही ये इलाका उत्तराखंड पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है. इन इलाक़ों में यहां आज भी अंग्रेजों की बनाई वह व्यवस्था जारी है, जहां पुलिस का काम रेवेन्यू डिपार्टमेंट के कर्मचारी और अधिकारी ही करते हैं जिन्हें ‘राजस्व पुलिस’ कहा जाता है.
इन इलाकों की लड़कियाँ छेड़छाड़ के मामले कहाँ दर्ज करवाएँ? उस पटवारी के पास जो आए दिन इलाके के दबंगों के दरबार में सलामी देता नजर आता है और जिसकी इन दबंगों के आगे कुर्सी में बैठने तक की हिम्मत नहीं बनती? इन इलाकों की लड़कियाँ के लिए कोई ‘Dial 100’ नहीं है, कोई महिला हेल्पलाइन नहीं और कोई ऐसी व्यवस्था नहीं जो विश्वास दिलाए कि उनकी सुरक्षा के लिए कुछ लोग जवाबदेह हैं.
प्रदेश के 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से की क़ानून व्यवस्था का ज़िम्मा उस पटवारी, लेखपाल या कानूनगो पर है जिसके पास न तो कोई संसाधन हैं और न ही कोई ट्रेनिंग. एक तरफ पहाड़ों में हाकम सिंह जैसे घाग हैं जो अपराध के तमाम आधुनिक तरीक़ों में पारंगत हैं और दूसरी तरफ वो पटवारी जिनके पास अपराध की रोकथाम के लिए एक लाठी तक नहीं है.
2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस ‘राजस्व पुलिस’ की व्यवस्था को समाप्त करने के आदेश दिए थे. जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिए थे कि छह महीने के भीतर पूरे प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त की जाए और सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाए. लेकिन, इस आदेश के इतने साल बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई.
अंकिता की हत्या के मामले में पुलिस के पास तर्क होगा कि ‘हमारे हाथ में ये मामला आते ही हम एक ही दिन में अपराधियों से सच उगलवाने में कामयाब रहे.’ लेकिन मूल सवाल वही है कि पुलिस के पास मामला आने में इतना समय क्यों लगा? और इससे भी अहम सवाल ये कि कितनी अंकिताओं के मामले पुलिस के पास पहुंच पाते हैं?
गढ़वाल की माटी –
रिपोर्ट – मो शौऐब खान
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