केंद्र सरकार का बड़ा फैसला,आजाद भारत में पहली बार होगी जाति जनगणना


दिल्ली में बुधवार (30 अप्रैल 2025) को मोदी कैबिनेट की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट मीटिंग की ब्रीफिंग करते हुए बताया कि सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला किया है. इसके साथ ही मीटिंग में किसानों के लिए भी बड़े फैसले किए गए हैं।
मोदी सरकार ने गन्ना किसानों को भी बड़ी सौगात दी है. गन्ने का FRP बढ़ाया गया है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “चीनी सीजन 2025-26 के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य 355 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है. यह बेंचमार्क मूल्य है, जिसके नीचे इसे नहीं खरीदा जा सकता है.”
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “पीएम मोदी के नेतृत्व में कैबिनेट में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं- सिलचर से शिलांग और शिलांग से सिलचर एक बहुत बड़ी परियोजना हाई स्पीड कॉरिडोर हाईवे जो मेघालय और असम को जोड़ता है उसे मंजूरी मिली है. इसकी अनुमानित लागत 22,864 करोड़ रुपए है.”
केंद्र सरकार ने बुधवार (30 अप्रैल) को जनगणना कराने से जुड़ा बड़ा एलान किया है। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मोदी सरकार अगली जनगणना के साथ जातीय आधार पर लोगों की गणना भी करेगी। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने विपक्षी दलों को घेरा और कहा कि कांग्रेस ने सिर्फ राजनीति के लिए जातीय मुद्दों को उठाया है। उन्होंने दावा किया कि जातीय जनगणना से सामाजिक ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा।
गौरतलब है कि इससे पहले भी कई मौकों पर जातिगत जनगणना की मांग उठती रही है। लेकिन सरकार ने इन मांगों को दरकिनार कर दिया। हालांकि, अब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र ने जातीय सर्वे कराने का फैसला किया है। इसी के साथ आजाद भारत में पहली बार जातिगत जनगणना का रास्ता लगभग साफ हो गया है।
देश में आखिरी बार कब हुई थी जातिगत जनगणना?
देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।


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