उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकायुक्त संस्थान को सुचारू रूप से सचालित किए जाने को लेकर हल्द्वानी के गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी की जनहीत याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ ने राज्य सरकार से शपथपत्र के माध्यम से न्यायालय को यह बताने को कहा है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया गया है और संस्थान जब से बना है तब से 31 मार्च 2023 तक इसपर कितना खर्च हुआ है ? इसका वर्षवार विवरण पेश करें ? मामले की अगली सुनवाई 8 मई को तय की गई है।
अधिवक्ता राजीव बिष्ट ने बताया कि जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभीतक लोकायुक्त की नियुक्ति नही की है। जबकि संस्थान के नाम पर वार्षिक 2 से 3 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है। जनहित याचीका में कहा गया है कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश में लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा रही है, परंतु उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं।
हर छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है। प्रदेश की विजिलेंस और एस.आई.टी.जैसी जांच एजेंसियों द्वारा एन.एच.74 मुआवजा घोटाला, समाज कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति घोटाला, स्वास्थ्य विभाग के एन.एच.एम.में दवा खरीद घोटाले जैसे अनेकों प्रकरणों को ठंडे बस्ते में डालने का उदाहरण देते हुए राज्य में इसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराने के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति करने की मांग की गई।
जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं, जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में होता है। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नही है “जिसके पास यह अधिकार हो की वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजिकृत कर सके।
उत्तराखंड राज्य की वर्तमान व्यवस्था में राज्य सरकार के प्रभाव और हस्तक्षेप से मुक्त ऐसी कोई भी जांच एजेंसी नही है, जो मुख्यमंत्री सहित किसी भी जनप्रतिनिधि या किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच और कार्यवाही कर सकें।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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