उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी की मटरगली के समीप नजूल भूमि में बनी व्यायामशाला की भूमि पर अतिक्रमणकारियों द्वारा कब्जा किए जाने और उन्हें हटाए जाने को लेकर उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश को लिखे पत्र का स्वतः संज्ञान लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की गई।
मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपीन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ ने जिलाधिकारी को निर्देश दिए हैं कि वे दोबारा से इस भूमि का निरीक्षण करें और अतिक्रमणकारियों को हटाकर उसकी रिपोर्ट मय दस्तावेजों के एक माह के भीतर कोर्ट में प्रस्तुत करें।
न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है तो अगली तिथि को जिलाधिकारी स्वयं न्यायालय में पेश होंगे। मामले की अगली सुनवाई एक माह बाद के लिए तय की है।
पूर्व में भी न्यायालय ने जिलाधिकारी को यह निर्देश दिए थे। जिलाधिकारी द्वारा पेश किए गए शपथपत्र से न्यायालय असन्तुष्ट दिखी। जो शपथपत्र पेश किया गया उसमें कहीं यह उल्लेख नहीं किया गया कि कितने लोगों ने इस भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है, कितनी दुकानें बनी हैं, कितने होटल और मकान बने हैं ? जिसपर न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए जिलाधिकारी से दोबारा इस भूमि का निरीक्षण कर मय दस्तावेज़ों, फिर से शपथपत्र पेश करने को कहा है।
मामले के अनुसार हल्द्वानी व्यायामशाला सोसायटी के पदाधिकारी ने उच्च न्यायालय को पत्र लिखकर कहा कि हल्द्वानी मटर गली के समीप नजूल भूमि में बनी व्यायामशाला की जमीन पर अतिक्रमणकारियों द्वारा कब्जा कर वहां पर निर्माण कर लिया है, जिसमे स्वराज आश्रम भी शामिल है। यह व्यायामशाला का मुख्य उद्देश्य स्थानीय खिलाड़ियों को निःशुल्क परिशिक्षण देना था। जिस पर अतिक्रमण कई लोगो के द्वारा अतिक्रमण किया गया।
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से व्यायाम शाला की भूमि से अतिक्रमण हटाने की गुहार 2018 में लगायी थी। पूर्व में न्यायलकय ने उनके पत्र का संज्ञान लेते हुए अधिवक्ता गोपाल के. वर्मा को न्यायमित्र नियुक्ति किया था । पूर्व की जांच रिपोर्ट में जिला प्रशासन ने माना था कि व्यायाम शाला की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है।फिर भी उसे नही हटाया गया।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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