उत्तराखंड हाई कोर्ट ने नैनीताल के सन 2016 -17 के बीच रहे तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान 18 स्टोन क्रेशरों का अवैध खनन एवं भंडारण पर लगाये गए करीब 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ कर देने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।
मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी व पंकज पुरोहित की खण्डपीठ ने दोनों अधिकारियों की व्यक्तिगत पेशी 15 अकटुबर को भी जारी रखी है। अब मामले की अगली सुनवाई 15 अकटुबर को होगी। पिछली तिथि को कोर्ट ने सचिव खनन व निदेशक से कहा था कि जनहित याचिका में लगाये गए आरोपो के अलावा राज्य के कितने स्टोन क्रेशरों का जुर्माना 2016 से अब तक किया, उसका व्योरा दें।
आज सेकेट्री संत के द्वारा कोर्ट के पूर्व के आदेश पर शपथपत्र पेश किया। हुई सुनवाई पर कोर्ट ने दोनों अधिकरियो से अगली तिथि को फिर से कोर्ट में पेश होने को कहा है।
याचिकर्ता का कहना है कि जो शपथपत्र उन्हें सेकेट्री खनन का मिला है। वह आरटीआई में मिली सूचना से मेल नही खाता है। मैंने आरटीआई से जिले के 18 स्टोन क्रेशरों का जुर्माने के मामले पर सुचना मांगी थी जिसमे से उन्हें 12 की दी गयी। बाकी का रिकार्ड नही होंने का हवाला दिया। जो रिपोर्ट पेश की गई है वह जनहित याचिका में संग्लन आरटीआई की रिपोर्ट से मेल नही खाती है।
सचिव ने जो शपथपत्र पेश किया है बाकी जिलों को छोड़ो नैनीताल के जिले का आंकड़ा भी गलत दिया है। 2016 से अब तक सेकेट्री की रिपोर्ट के मुताबिक नैनिताल जिले में 23 केस अवैध भंडारण व अन्य में दर्ज हुए, जिसमे से 18 का जुर्माना माफ़ किया और 5 जुर्माना कम किया। जबकि उन्हें मिली आरटीआई में 2015-16 में 27 केश,2016-17 58 केश , 2017-18 में 48 और 2018 – 2019 में 11 केस दर्ज हुए थे। उनमें से 90 प्रतिशत का जुर्माना जीरो और बाकी का कम कर दिया गया। जो गलत है। ऐसे ही आंकड़े अन्य जिलों के भी आएं है जिनमे अवैध भंडारण के केस 2016 से अब तक हुए ही नही?
मामले के अनुसार समाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा कई स्टोन क्रेशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपया माफ कर दिया।
तत्कालीन जिला अधिकारी ने उन्ही स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ किया जिन पर जुर्माना करोड़ो में था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नही किया । जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव, सचिव खनन से की गई तो उसपर कोई कार्यवाही नही हुई और साथ मे यह कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है।
जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा तो आज की तिथि तक उन्हें इसका लिखित जवाब नही दिया गया। इसके बाद उनके द्वारा इसमें आरटीआई मांग कर कहा कि जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है। आरटीआई के माध्यम से अवगत कराएं। जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा कहा गया कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नही है।
जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नही है तो जिलाधिकारी के द्वारा कैसे स्टोन क्रेशरों पर लगे करोड़ रुपये का जुर्माना माफ कर दिया। फिर उनके द्वारा 2020 में चीफ सेकेट्री को शिकायत की और चीफ सेकेट्री ने औघोगिक सचिव से इसकी जाँच कराने को कहा। औद्योगिक सचिव ने जिला अधिकारी नैनीताल को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया।
डीएम द्वारा इसकी जांच एसडीएम हल्द्वानी को सौप दी। जो नही हुई। जबकि औद्योगिक विभाग के द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इसपर जाँच आख्या प्रस्तुत करने को कहा था जो चार साल बीत जाने के बाद भी प्रस्तुत नही की गई । जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इसपर कार्यवाही की जाय। क्योंकि यह प्रदेश के राजस्व की हानि है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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