नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को देश भर में लागू कर दिया गया है. इस बिल को साल 2019 में संसद में पास गया था. इस के लागू होने से तीन मुल्कों के छह गैर मुस्लिम प्रवासी समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता मिलने की राह प्रशस्त हो जाएगी।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) नियमों की अधिसूचना आज सोमवार को जारी हो गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सोमवार को शाम छह बजे सीएए के नियमों को लेकर अधिसूचना जारी की गई है। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) नियमों की अधिसूचना जारी होना केंद्र सरकार का बड़ा फैसला है।
ऑनलाइन मोड में जमा किए जाएंगे नागरिकता आवेदन
गृह मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बयान जारी कर कहा, गृह मंत्रालय (एमएचए) आज नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए-2019) के तहत नियमों को अधिसूचित करेगा. नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 कहे जाने वाले ये नियम सीएए-2019 के तहत पात्र व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाएंगे. आवेदन पूरी तरह से ऑनलाइन मोड में जमा किए जाएंगे जिसके लिए एक वेब पोर्टल उपलब्ध कराया गया है।
बता दें कि आने वाले कुछ ही दिनों में आगामी लोकसभा चुनावों की तारीखों का एलान हो सकता है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा देश में नागरिकता संशोधन कानून के लिए अधिसूचना जारी करना मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है।
CAA के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से आने वाले बाकी धर्मों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. केंद्र सरकार ने सीएए से संबंधित एक वेब पोर्टल भी तैयार कर लिया है, जिसे नोटिफिकेशन के बाद लॉन्च किया जाएगा. तीन मुस्लिम बहुल पड़ोसी मुल्कों से आने वाले वहां के अल्पसंख्यकों को इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा और सरकारी जांच पड़ताल के बाद उन्हें कानून के तहत नागरिकता दी जाएगी. इसके लिए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए विस्थापित अल्पसंख्यकों को कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।
साल 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया था. इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आने वाले छह अल्पसंख्यकों (हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी) को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया था. नियमों के मुताबिक, नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार के हाथों में होगा।
इसका मक़सद पाकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना है. इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया है. यही इस विवाद की वजह है।
विपक्ष का कहना है कि ये संविधान के अनुच्छेद के 14 का उल्लंघन जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है. एक तरफ़ ये कहा जा रहा है कि ये धार्मिक उत्पीड़न के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की कोशिश है वहीं दूसरी ओर मुस्लिमों का आरोप है कि इसके ज़रिये उन्हें बेघर करने के क़दम उठाए जा रहे हैं।
इस क़ानून पर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं. भारतीय संविधान के अनुसार देश में किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. लेकिन इस क़ानून में मुसलमानों को नागरिकात देने का प्रावधान नहीं है. इसी वजह से धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं।
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