गृह मंत्रालय ने शत्रु संपत्ति निस्तारण आदेश 2018 के दिशा निर्देशों में संशोधन करने का आदेश जारी किया है संशोधित दिशा निर्देशों को अब शत्रु संपत्ति निस्तारण संशोधन आदेश के रूप में जाना जाएगा।
केंद्र सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में शत्रु संपत्ति के निस्तारण के लिए दिशा निर्देशों में संशोधन किया है पाकिस्तान और बांग्लादेश की नागरिकता लेने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति ज्यादातर 1947 और 1962 के बीच शत्रु संपत्ति कहलाती है केंद्र ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के उन शत्रु संपत्ति के निपटान की बात कही है जिनका मूल्य ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ से कम और शहरी क्षेत्र में 5 करोड रुपए से कम है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिसको लेकर एक अधिसूचना जारी की है जिसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में एक करोड रुपए से कम और शहरी क्षेत्र में 5 करोड रुपए से कम मूल्य की शत्रु संपत्ति का निस्तारण किया जाएगा।
अधिसूचना में कहा गया है कि निस्तारण करते समय संरक्षक को पहले अभियोगी को खरीद का प्रस्ताव देना होगा यदि वह खरीद के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है तो इसका निस्तारण पहले से निर्धारित मानदंडों के अनुसार किया जाएगा।
ग्रामीण में राज्य के ये सभी क्षेत्र आएंगे
अधिसूचना में गृह मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि ग्रामीण क्षेत्र का तात्पर्य राज्य के किसी भी क्षेत्र से है सिवाय उन क्षेत्रों के जो किसी शहरी स्थानीय निकाय और छावनी बोर्ड के अंतर्गत आते हैं इसी प्रकार शहरी क्षेत्र से तात्पर्य किसी नगर निगम या नगर पालिका की सीमा के भीतर के क्षेत्र से है।
वहीं केंद्रीय सरकार जनसंख्या, उद्योगों के संकेंद्रण, क्षेत्र की समुचित योजना की आवश्यकता और अन्य प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए, सामान्य या विशेष आदेश द्वारा शहरी क्षेत्र घोषित कर सकती है सरकार ने शत्रु संपत्तियों को भारत के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक को सौंप दिया है। जो कि केंद्र सरकार के अधीन स्थापित एक कार्यालय है।
शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 में लागू किया गया
शत्रु संपत्ति अधिनियम 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1968 में लागू किया गया जो ऐसी संपत्तियों को विनियमित करता है और संरक्षक की शक्तियों को सूचीबद्ध करता है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक देश में कुल 12611 प्रतिष्ठान शत्रु संपत्ति कहलाते हैं जिनकी अनुमानित कीमत लगभग एक करोड रुपए से अधिक है।
वही निस्तारण करते समय संरक्षक को पहले अभियोगी को खरीद का प्रस्ताव देना होगा यदि वह प्रस्ताव अस्वीकार कर देता है। तो इसका निस्तारण निर्धारित मानदंडों के अनुसार किया जाएगा।
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